Friday, 31 May 2013


Unwaan "Qatil"

जिन्दा लाशों है दर -दर पे इस शहर में, फिर भी इन्हें कोई कब्रिस्तान कहता नहीं है
तराशे जाते है खंजर जुबान के घर-घर में ,फिर भी उन्हें कोई क़ातिल कहता नहीं है
 
jinda lashe hai dar-dar pe is shahr me, fir bhi inhe koi qabrisatn  kahta nahi hai
tarashe jate hai khanjar jubaN ke ghar-ghar me, fir bhi unhe koi qatil kahta nahi hai.

Ramkishore Upadhyay

2 comments:

  1. वाह
    गजब का अहसास
    बहुत सुंदर
    बधाई


    आग्रह है पढें,ब्लॉग का अनुसरण करें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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