Unwaan "Qatil"
जिन्दा लाशों है दर -दर पे इस शहर में, फिर भी इन्हें कोई कब्रिस्तान कहता नहीं है
तराशे जाते है खंजर जुबान के घर-घर में ,फिर भी उन्हें कोई क़ातिल कहता नहीं है
jinda lashe hai dar-dar pe is shahr me, fir bhi inhe koi qabrisatn kahta nahi hai
tarashe jate hai khanjar jubaN ke ghar-ghar me, fir bhi unhe koi qatil kahta nahi hai.
Ramkishore Upadhyay
वाह
ReplyDeleteगजब का अहसास
बहुत सुंदर
बधाई
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तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.in
Dhanyvad, Jyoti ji
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