प्रेम से मुक्ति ?
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सूर्य की
रश्मियों पर आरुढ़
होती अग्रसर
भोर में धरा की ओर
वह धीमे कदम रखती
पवन के झूले में झूलती
बादलों से बातें करती
मोहक,छुईमुई सी नाजुक
गतिहीन होठों से संवाद करती
दामिनी सी दमकती
वह सायास
ह्रदय पटल पर अंकित
कर जाती वह --------
जो सहज प्राप्त नहीं
राजर्षि और ब्रह्मर्षि को भी
सतत साधना से
सम्पूर्ण समर्पण --
देह का देह में
विदेह का विदेह में
अनंत
असीम
राग, अनुराग , प्रेम ---------
और ----------
देह से मुक्ति है संभव
योग ,ज्ञान व अनुभव के सोपान से
परन्तु ------------
क्या प्रेम से मोक्ष प्राप्त होता है ?
राम किशोर उपाध्याय
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सूर्य की
रश्मियों पर आरुढ़
होती अग्रसर
भोर में धरा की ओर
वह धीमे कदम रखती
पवन के झूले में झूलती
बादलों से बातें करती
मोहक,छुईमुई सी नाजुक
गतिहीन होठों से संवाद करती
दामिनी सी दमकती
वह सायास
ह्रदय पटल पर अंकित
कर जाती वह --------
जो सहज प्राप्त नहीं
राजर्षि और ब्रह्मर्षि को भी
सतत साधना से
सम्पूर्ण समर्पण --
देह का देह में
विदेह का विदेह में
अनंत
असीम
राग, अनुराग , प्रेम ---------
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देह से मुक्ति है संभव
योग ,ज्ञान व अनुभव के सोपान से
परन्तु ------------
क्या प्रेम से मोक्ष प्राप्त होता है ?
राम किशोर उपाध्याय
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