Tuesday, 28 May 2013

ये हमारी बुतपरस्ती की हद थी, शायद 
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झुकाके नज़रे उनको सलाम कह दिया 
ये हमारी सजदों की हद थी,शायद 

उनके कंवल से कदमों को बार -बार चूमा
ये हमारी बुतपरस्ती की हद थी, शायद

देखने भर से भी दिल को करार आगया
ये हमारी इबादत की हद थी,शायद

सहके सितम भी जुबां पे नाम ना आया
ये हमारी शराफत की हद थी,शायद

जालिम ने आशियाने को फूंक तक डाला
ये हमारी बर्दाश्त की हद थी,शायद

राम किशोर उपाध्याय

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