Thursday, 8 May 2014

कैसा है ये निज़ाम
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छोटी-बड़ी सब तूतियां
बज रही हैं कुटी से राजप्रासाद तक 
मुखमंडलों पर छाया गया है अजीब सन्नाटा
कैसा है ये नक्कारखाना ......
शस्त्र सब थक गए
हुए सब हताहत राजा से प्रजा तक
श्वेत ध्वज लहरा दिया और सेनाएं बैरकों में लौट गयी
कागजों पर रणभेरी अभी भी बज रही है
कैसा है ये युद्ध ......
श्वान सब सो गए
कपोत सब डर गए चिट्ठियां ढ़ोते -ढ़ोते
श्रृगाल मांस नोच रहे शावक का
शिकारी कर रहे है वन्यजीव संरक्षण
कैसा है ये निज़ाम .....
रामकिशोर उपाध्याय

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