Thursday, 29 May 2014

बिन दैवीय मध्यस्थता
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कभी -कभी आँख में
कण भी अश्रु का कारण होता हैं
परन्तु आँख से अश्रु
जब प्रेमजन्य पीड़ा की अभिव्यक्ति बन छलके ...
कुछ कपोल पर गिरे
और सूरज की किरणों का सानिद्ध्य पाकर  इन्द्रधनुष बन चमके .....
कुछ जमीन पर गिरे
और अवनि का संसर्ग पाकर स्थिरता को कुछ अस्थिर करके मिटटी में जा धमके .....
कुछ अवनि और अम्बर के मध्य गिरे
और ग्लोब सा बन वायुमंडल में लटके ...
जिनमे आज भी
खोया अस्तित्व
पीड़ा का मर्म  ....
अपनी आँखों में शेष अश्रुओं में खोज रहा हूँ
बिना किसी दैवीय  मध्यस्थता  के  ..........|
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रामकिशोर उपाध्याय 

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