Tuesday, 20 May 2014

कल्पना 

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मन की उलझन में
कुछ शब्द मिले सुलझे हुए
किसी के कर्णफूलों जैसे आलोडित ......
ह्रदय की उद्वेलित भावभूमि में
कुछ भाव मिले स्पंदित होते हुए
किसी के मनवीणा के तारों जैसे झंकृत ......
कंठ की अवरुद्ध संगीत वीथिका से
अधरों पर कुछ स्वर उपजे गाते हुए
किसी कोकिला की कूक जैसे मधुसिक्त .....
सबने मिलकर एक नवीन गीत रचा
मेरे कंठ से बाहर आने के लिए आतुर दिखे
और फिर खग बन उड़ गए .........
कुछ समय पश्चात
किसी ने
उन्हें प्रेम-सरिता के
निर्मल घाट पर
भक्तों की आरती में
सस्वर सुना ... ............................|
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रामकिशोर उपाध्याय

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