Tuesday, 9 April 2013


राह के रोड़े
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यूँ राह चलते ---
किनारे पड़े कंकडो को पैर मत मारों
बेशक वे तुम्हारी राह का रोड़ा हो
अगर लौटते समय ----
उसी राह पे पास से गुज़रती
नदी का बेलगाम पानी चढ़ आया
तो वही कंकड़
तुम्हे घर की राह दिखायेंगे !!!!!

राम किशोर उपाध्याय
९.४.२०१३

4 comments:

  1. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...

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  2. सार्थक अभिव्यक्ति
    सुंदर भाव
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हो ख़ुशी होगी

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  3. बहुत अच्छी बात कही आपने ...

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