कोई खरीदार ही मिल जाये !!!!
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बादलों से ही चाँद निकले ये जरुरी तो नहीं
आरजू से ही खुदा मिले ये जरुरी तो नहीं
बेशक हम घर से बड़े ही मायूस से निकले हो
आगे बढ़कर थाम ले कोई हाथ ये जरुरी तो नहीं
अक्सर मिलते है जख्म पे जख्म बेवफाओं से
अपनों से भी मरहम मिल जाये ये जरुरी तो नहीं
अपनों की नफरत का रखता है हर कोई हिसाब
अजनबी से प्यार मिल जाये ये जरुरी तो नहीं
दिल बेचने को फिरता हूँ सरे बाज़ार आजकल
कोई खरीदार ही मिल जाये ये जरुरी तो नहीं
समंदर में खाती है हिचकोले लहरों पे कई कश्तियां
हर एक को साहिल मिल ही जाये ये जरुरी तो नहीं
राम किशोर उपाध्याय
१५.4.२०१३
'दिल बेचने को फिरता हूँ सरे बाज़ार आजकल
ReplyDeleteकोई खरीदार ही मिल जाये ये जरुरी तो नहीं'
- बिलकुल ज़रूरी नहीं !
अक्सर मिलते है जख्म पे जख्म बेवफाओं से
ReplyDeleteअपनों से भी मरहम मिल जाये ये जरुरी तो नहीं ..
बिलकुल जरूरी नहीं ... लाजवाब शेर हैं सभी ...
बिल्कुल जरुरी नहीं जी....उल्टा पुल्टा होता रहता है जीवन में...दुखी मन निकलो तो कोई मसखरा मिल जाता है....कोई दीवाना मिल जाता है..अपनी कहते हैं...औऱ हम उनकी सुनते रहते हैं...खरीदार का पता नहीं पर अक्सर मोलभाव करके भी खरीदार बिना खरीदे चले जाते हैं..क्या कहें जिंदगी है..बेहतरीन लाइनें
ReplyDeleteअक्सर मिलते है जख्म पे जख्म बेवफाओं से
ReplyDeleteअपनों से भी मरहम मिल जाये ये जरुरी तो नहीं
लाजवाब शेर हैं सभी ..
latest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
वाह! लाजवाब रचना | सुन्दर शब्दावली के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
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