मै
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++
उंगलियों से चुनता अपने ही पोरुओं पे लगे दुःख के शूल
पलकों से उठता अपने होठों पे लगे आनंद के फूल
विद्रूपता लिखने पर विस्मित होता
विदूषक बनाने पर रुदन करता
अपने ही गढ़े चरित्रों के अभिनय पर हँसता
शिवि की भांति स्वयं का विच्छेदन करता
दधिची सा हड्डी का वज्र बनाकर स्वयं से युद्ध करता
स्वप्नों में अनुतरित प्रश्न के उत्तर खोजता
खुली आँखों में स्वर्ण स्वप्न ढूंढता,रहस्य समेटता
शांति पाने दूर तक चला जाता
फिर मुड के जीवन के कोलाहल में लौट आता
स्वयं को तलाशता
कभी ईश में , कभी शीश में -----
मन की सीढ़ियों से पाताल लोक में उतर जाता
बटोरने लगता शीशे के टुकड़े -आइने की किरचे
जोड़ने पर दिखता हूँ अपना ही बिम्ब
अपनी ही आत्मा के सामने नि:वस्त्र
भयमुक्त,जीवन मुक्त और वासना मुक्त
माँ की कोख में पड़े पिता के बिंदु जैसा
मै ---------------------------------
राम किशोर उपाध्याय
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++
उंगलियों से चुनता अपने ही पोरुओं पे लगे दुःख के शूल
पलकों से उठता अपने होठों पे लगे आनंद के फूल
विद्रूपता लिखने पर विस्मित होता
विदूषक बनाने पर रुदन करता
अपने ही गढ़े चरित्रों के अभिनय पर हँसता
शिवि की भांति स्वयं का विच्छेदन करता
दधिची सा हड्डी का वज्र बनाकर स्वयं से युद्ध करता
स्वप्नों में अनुतरित प्रश्न के उत्तर खोजता
खुली आँखों में स्वर्ण स्वप्न ढूंढता,रहस्य समेटता
शांति पाने दूर तक चला जाता
फिर मुड के जीवन के कोलाहल में लौट आता
स्वयं को तलाशता
कभी ईश में , कभी शीश में -----
मन की सीढ़ियों से पाताल लोक में उतर जाता
बटोरने लगता शीशे के टुकड़े -आइने की किरचे
जोड़ने पर दिखता हूँ अपना ही बिम्ब
अपनी ही आत्मा के सामने नि:वस्त्र
भयमुक्त,जीवन मुक्त और वासना मुक्त
माँ की कोख में पड़े पिता के बिंदु जैसा
मै ---------------------------------
राम किशोर उपाध्याय
Dhanyvad. Apsa sadaiv hi ashish evam sneh prapt hota hai. ABHAAR,Shastri ji
ReplyDeleteDhanyvad, Tushar. Apki abhivyakti se mai abhibhut hu.
ReplyDelete