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देख ले माँ ..
मुख में मेरे ब्रह्माण्ड है .....
यह नहीं मिटटी का गोला
इसमें भरे जय (महाभारत) के सभी काण्ड हैं
यहाँ सभी जीवों में वही तेरा गोपाल है
संग में खड़ी गैया नहीं
ये मेरी इन्द्रियां विशाल है
रम रहा हूँ योग मैं ...
कर रहा हूँ भोग मैं ......
यह नही कोई विरोधाभास है
यही तो सत्य का प्रकाश है
मैं रहता हूँ जगत में
लिप्त भी
निर्लिप्त भी
ये बाल सखा जो है मेरे
ये आत्माएं है जो मुझे है घेरे
देख ले माँ......
हूँ वही तेरा नन्हा सा दिया
आकर पालन विष्णु के आदेश का कर दिया
कभी कालिया को मारूंगा
कभी गोवर्धन को धारूंगा
कभी कंस की करूँगा हत्या
पर युद्ध में भी धर्म का रहूँगा सत्या
बन जाऊँगा अर्जुन का सखा
सदा हरूँगा जग की व्यथा
मैं अब जान गयी ,वत्स.............
जग का अब होने वाला है उत्स
मेरे देख रहे हैं नेत्र
तू तो सत्य का ही है मित्र
तू ही त्रिनेत्रधारी
तू ही चक्रपाणी
कहूँगी उससे जो है तेरा बाबा नन्द
कि लाला हमारा,बच्चा नही,है प्रभु का अमित आनंद
बस अब यह लीला मत दिखा
जा खेल और जग को खेल खिला
तू कितनी प्यारी है माँ .....
*
रामकिशोर उपाध्याय
Thursday, 18 May 2017
कृष्ण और यशोदा सम्वाद
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हार्दिक आभार आदरणीय
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