कहीँ सबेरा
कहीँ अँधेरा
कहीँ पर दीपक
कहीँ पर आला
कहीँ पर सजती दीपों की माला
तब होता वहाँ उजाला
कहीँ देव खुद रचते माया
कहीँ खुद उनका मन भरमाया
बड़ा कठिन ये सब ज्ञाना
चला नित्य बस राह एक
जग भूला और खुद को जाना
*
Ramkishore Upadhyay
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