Wednesday, 3 May 2017

जग भूला

कहीँ सबेरा
कहीँ अँधेरा
कहीँ पर दीपक
कहीँ पर आला
कहीँ पर सजती दीपों की माला
तब होता वहाँ उजाला
कहीँ देव खुद रचते माया
कहीँ खुद उनका मन भरमाया
बड़ा कठिन ये सब ज्ञाना
चला  नित्य बस राह एक
जग भूला और खुद को जाना
*
Ramkishore Upadhyay

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