Wednesday, 5 December 2018

ये प्रश्न मुझसे से भी है ,, तुमसे भी है

तुलसी की पत्तियां डालकर 
अदरख के साथ उबालकर 
जब -जब पीता हूँ चाय ,,,,,,,,,,,,
ठण्ड ही नहीं मेरा डर भी हो जाता है काफूर .........
शब्द -तुलसी जब उबलती है
मजहब के अदरख के साथ
बड़ी सी केतली में
पीता तो तब भी हूँ यह चाय ...........
पर सिहर जाती है मेरी हड्डियाँ
डर खुद थरथराने लगता है बनकर लातूर
क्या जग छोडकर निकल जाऊं
और रणछोड़ कहलाऊं
बोलो ! कब आओगे कृष्णा
कब हरोगे शिव जग की तृष्णा
पुनर्पाठ करो अब फिर से शास्त्रों का
और पाठ करो जरा शोर से
जग जाए शेषशैय्या से हरि विष्णु
देखते हैं कबतलक .....
कब कहलायेंगे हम मानव ,कब होंगे सहिष्णु
पर क्या अनंत प्रतीक्षा करना उचित है
है कोई सोचने वाला
है कोई दीपक जलाने वाला
इस अँधेरी रात में ..............
ये प्रश्न मुझसे से भी है ,,
तुमसे भी है
*
रामकिशोर उपाध्याय

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