Friday, 13 July 2012

स्वांत ******




आया प्रवाह तो उठी मन में एक अजब तरंग |
भाव की डोर बंधी, उडी अब जीवन की पतंग ||
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सांसों में समाया मलय वन, रची तन में सुगंध |
बिटप को छोड अब जगी जिजीविषा की भुजंग ||
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वन में कूके कोयलिया,मन नाचे मयूर संग |
वीणा के तार सधे,बजे सब ढोल और मृदंग ||
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अनंत में खोया अंत, भ्रम से छूट गया विहंग |
जागी कुण्डली,हिलोरे मारे परमानंद की तरंग ||
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खो गई सब चेतना,अब रही न निराशा या उमंग |
स्थूल मिटा, सूक्ष्म जगा, हुई जब योगशक्ति संग ||
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रामकिशोर उपाध्याय (C)

2 comments:

  1. yog se amaadhi tak ki yatra ka bahut hi achcha chitran.bahut dinon se mai ispar likhne ko soch rha tha,sahaj dhang se achchi prastuti ke liye dhanywad.

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