आया प्रवाह तो उठी मन में एक अजब तरंग |
भाव की डोर बंधी, उडी अब जीवन की पतंग ||
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सांसों में समाया मलय वन, रची तन में सुगंध |
बिटप को छोड अब जगी जिजीविषा की भुजंग ||
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वन में कूके कोयलिया,मन नाचे मयूर संग |
वीणा के तार सधे,बजे सब ढोल और मृदंग ||
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अनंत में खोया अंत, भ्रम से छूट गया विहंग |
जागी कुण्डली,हिलोरे मारे परमानंद की तरंग ||
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खो गई सब चेतना,अब रही न निराशा या उमंग |
स्थूल मिटा, सूक्ष्म जगा, हुई जब योगशक्ति संग ||
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रामकिशोर उपाध्याय (C)
yog se amaadhi tak ki yatra ka bahut hi achcha chitran.bahut dinon se mai ispar likhne ko soch rha tha,sahaj dhang se achchi prastuti ke liye dhanywad.
ReplyDeleteThanks a lot, Tripathi ji. Aap bhi likhe to jyada sundar chtran hoga.
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