सिसकती आरज़ू
सूरज छिप गया,शहर भी बियाबान है,
टूटी है उम्मीदें, तमन्नाए भी अनजान
है.
लुट चुकी चाँदनी,अब चाँद भी हैरान है,
ले रहे फूल सिसकी, मन भी परेशान
हैं.
रूठी है कलियाँ, भँवरे भी बदगुमान
है.
छिन गयी वीणा , गीत भी बेजुबान है
जम रही है बर्फ, बगिया भी वीरान है,
आँख हैं सूनी ,और सेज भी सुनसान
है.
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