धुंध मे लिपटी सुबह
ठिठुरती कंपकपाती रात
पैर भी मुडे-तुडे
पलके हो चली बोझल
कई प्रहर की निद्रा
ठंडे जमीन के बिस्तर के पास आने से कतराती
वो जाग रहा था
बस एक आशा का अवलम्ब लिए
सुबह का सूरज
चिडियों की चहचहात ने
किया उसे विवश
मुंह पर बर्फ के कतरों को
फटी बाजू से रगडता
अवनी मधुचंद्रिका में अभी भी लिप्त हैं
उसकी शिराएं जम गई देखकर
धुंध में लिपटी सुबह ----
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