चलो बुधिया !
वे आ रहे हैं
सभी मरजों की दवा ला रहे हैं
कुछ लोग -----
अब बरसात मे नहीं टपकेंगे तुम्हारे ओसारे
घर के भरे रहेंगे कुठार सारे
नहीं खासेंगी बूढ़ी काकी
बिटिया के कपड़ों मे नहीं होगी झांकी
ददुवा को मिलेंगे पूरे पैसे पेंशन के
वो भी बिना टेंशन के
पढ़ो , पढ़ो , इस कागज़ पर सब लिखा है।
बुधिया ने बीच मे टोका
तुमने यह कह के दिया था पहले भी धोका
कहा था वो आ रहे है
जादू की छड़ी ला रहे है
सब होंगे दुख दूर
करो यकीन , कहने वाले है जग मे मशहूर
बेटा बनेगा इसी जिले का अफसर
पीछे दोड़ेगी सरकारी मोटर
शन्नो और नूर
मिलेगा वजीफा भरपूर
भैया, मेरा ओसारा तो अभी भी टपकता है
बेटा रोजगार को तरसता है
है बेशक अपनी जात
पर बिछाता अलग खाट
पूछने पर दरबान मारता है लात
और बता देता अपनी औकात
अब तो मेरे जमीदार की जमीन बिक गयी
रही सही मजदूरी भी छिन गयी
खेत मे कंकरीट के बन लहलहाने लगे है
विकास के परचम लहराने लगे है
किसान के बेटे अब ट्रक में सामान ढो रहे है
और बिल्डर की डांट सह रहे है
कर गए सभी शहर पलायन
क्या फत्तू , क्या भावन
भैया, मुझे झोपड़ी मे पड़ा रहने दो
कुछ बची साँसे अपनी गिनने दो
ले चल सकतों हो तो ले चलो जहाँ हो
बस एक पेटपाल !
बस एक पेटपाल !!
बहुत सुंदर कबिता । जमाने से देखते हुए और वर्षों से झूठे वादे की कड़वी खुराक खाकर ये बूढ़ी आँखें अब और सपने देखने को तैयार नहीं है । हकीकत को वयान करती ये कबिता निराला जी की 'भिक्षुक ' की याद दिला रहीं हैं ।सुंदर कबिता के लिए बधाई ।
ReplyDeleteधन्यवाद जयविन्द जी
ReplyDeleteशानदार बयान!
ReplyDeleteकरुण विम्बों के साथ सत्य का ताना बाना बुनती कविता!