हरे-भरे उपवनों में
बसंत की प्रतीक्षा करते हैं वो ही पुष्प
जो अनुकूलता के हो गये अपराधी --
शुष्क रेगिस्तानों में
अक्सर खिला करते हैं वो ही पुष्प
जो संघर्ष के हो गये घोर उन्मादी ---
अवसाद के शमसान में
मुस्कराते हैं वो ही पुष्प
जो जीवंतता के हो गये आदी --
३०।१।२०१२
अवसाद के श्मशान में खिलने वाले जीवंत पुष्पों को नमन!
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