नहीं मांगता फूलों की क्यारी
नहीं बांटता बगिया तुम्हारी
हो सोने के कंगन प्यारे-प्यारे
गले में हो बाँहों का हार तुम्हारे
पावों में हो पायल व घुंघरू
घायल दिल को कहाँ धरुं
ह्रदय पर चलती छुरी तुम्हारी
होले से बजती सीटी हमारी
अब आ जाओ निकट हमारे
बरसों से पड़े
मेरे अधूरे अरमान पर तरस खा भी जाओ .
नहीं मांगता स्वर्ग तुम्हारा
चमकता रहे मुखड़ा प्यारा
चाहता हूँ कि बहे दरिया-ए-जाम
हो रोशन तेरे साथ मेरी हर शाम
जब कभी बले दिया मद्धम
हो चले सांसें मेरी गजब
न हो कोई दूरियां
और न कोई मजबूरियां
मदहोशी में लब रहे खामोशी में
सदियों से पड़ी
मेरी बंजर जमीन पर बरस भी जाओ .
प्रिय मित्र , जो आप मांग रहें है , वह भी कम नहीं है ।
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