पाने को आदमी, ख़ुशी के पल,
छलता जाता खुद को हर पल .
कभी पिघलता जिस्म की गर्मी से
कभी जमता रिश्तो की बेरुखी से
घुटकर रह जाता कभी अचल .
छलता जाता खुद को हर पल .
कभी आती धुंध को ही सच मानता
कभी जाती गंध को समेटना चाहता
गिरता कभी टूटते तारे सा विकल .
छलता जाता खुद को हर पल .
कभी झरने का पानी बन बहता
कभी जंगल की आग बन जलता
भ्रम में उलझ रह जाता अचल .
छलता जाता खुद को हर पल .
कभी आशा में विचलित हो जाता
कभी निराशा में प्रेम गीत भी गाता
देख शोख अदाएं जाता मचल .
छलता जाता खुद को हर पल .
कभी सिक्कों के लिए दानव बनता
कभी सिक्का बन भट्टी में गलता
माया नगरी में लुटता पल पल.
छलता जाता खुद को हर पल .
एक अमूर्त या मूर्त है ख़ुशी
एक टुकड़ा या पूर्ण है ख़ुशी
उतर भंवर में गर है सबल.
छलता जाता खुद को हर पल .
अर्थ, काम या मोक्ष है ख़ुशी
भीतर छलकी पड़ी है ख़ुशी
ठगेगी वरना ख़ुशी, तू बस चल .
पाने को आदमी, ख़ुशी के पल,
छलता जाता खुद को हर पल .
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