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नदियाँ पीकर भी
बुझी न सागर की प्यास
स्रोत ढूँढता वो
आया पर्वत के पास
पलभर कॊ जब
रुकी झरने की कुछेक साँस
खारा कहकर
कर दिया सागर का उपहास
नही जरुरी हो सदा
विस्तार में सच का आभास
एक नन्ही सी बूँद भी
अक्सर भर देती उल्लास
*
Ramkishore Upadhyay
बुझी न सागर की प्यास
स्रोत ढूँढता वो
आया पर्वत के पास
पलभर कॊ जब
रुकी झरने की कुछेक साँस
खारा कहकर
कर दिया सागर का उपहास
नही जरुरी हो सदा
विस्तार में सच का आभास
एक नन्ही सी बूँद भी
अक्सर भर देती उल्लास
*
Ramkishore Upadhyay
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