Thursday, 26 September 2013

गुनाहगार 
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हैं हाज़िर गुनाहों के साथ उसकी अदालत में,
और बेगुनाही की हर एक दलील टाल देता हैं।

कातिल भी वही हैं,मौका-ए-गवाह भी हैं वही,
फिर भी कोई नाइंसाफी की बात टाल देता हैं।

ये कैसी सजा देता हैं उसको वो नादाँ मुंसिफ,
कि फांसी मुक़र्रर कर के फैसला टाल देता हैं।

रामकिशोर उपाध्याय



ऐ खुदा !

इस मुश्किल दौर में जीने की मेरे पास बस दो वजह हैं,
एक तेरी मुस्कराहट,,दूसरी तुझे पाने की मेरी जुस्तजू।
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उन्वान -' शरारत' मैं ,,,,,,हूँ,,,,,,,ना

एक हलकी शरारत से वो कह गए गहरी बात,
बरसों तक उसे हम ढूंढते रहे पाक किताबों में। 
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के लहर विवश हैं और बहुत दूर हैं किनारा,
ले चल किश्ती तू,जब साजन ने हैं पुकारा। 
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जबसे खुदा मान के उनकी इबादत शुरू की,
बहिश्त का खुदा लड़ने जमीन पे आ गया।

रामकिशोर उपाध्याय


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