पलकों पे फलक
------------------
पलकों पे फलक हैं और आँखों में जमीं,
सजधज के बारात तेरे दर पे आके थमी।
लबों पे प्यास हैं और मेरे हाथों में जाम,
वस्ल की ये रात तेरे इशारे पे आके रुकी।
पतवार भी तू हैं और नाखुदा भी तू ही,
फिर भी कश्ती साहिल पे आके भटकी।
रामकिशोर उपाध्याय
------------------
पलकों पे फलक हैं और आँखों में जमीं,
सजधज के बारात तेरे दर पे आके थमी।
लबों पे प्यास हैं और मेरे हाथों में जाम,
वस्ल की ये रात तेरे इशारे पे आके रुकी।
पतवार भी तू हैं और नाखुदा भी तू ही,
फिर भी कश्ती साहिल पे आके भटकी।
रामकिशोर उपाध्याय
No comments:
Post a Comment