Monday, 14 May 2012

मेरी माँ



मेरे प्राणों में
हो रहा हैं जो  स्पंदन
वह तेरा ही तो हैं ऊर्जा कण
देह देकर मुझे तो  मुक्त कर दिया माँ तूने
पर माँ - माँ कहती हैं नित मेरी हर धड़कन,
फिर भी किस कालखंड से करूँ तेरा स्मरण
यह सोच कर हो रहा हैं अजीब सा स्फुरण
रात को बिस्तर को गीला करने पर जगाने से
घुटने के बल चलने पर प्रसन्न होने से
पहली बार माँ कहने से
स्कूल से देर लोटने पर बाट जोहने से
पिता की मार से बचाने से
उसके हाथ की रोटी खाकर जवान होने से
या फिर रोजी रोटी के लिये घर से बिदा करने से
दुख की हर घड़ी मे सिर पर हाथ फेरने से
सोचता हूँ किस कालखंड से करूँ तेरा स्मरण
मुझे तो लगता हैं माँ तू आज भी खड़ी हैं
मेरे घर की दहलीज़ पर  
मेरा हाथ पकड़े
अपने आँचल से मुझे ढके
वही स्नेहिल छांव
वही करुणा आंखो में लिए
जो कह रही हैं मुझे भी  क्यूँ रुला रहा हैं तू
इतना सब याद दिला कर
बस अपनी राह पर चलता चल निस्छल  
देखना तेरे पीछे खड़ी हूँ  मैं ,
तेरी माँ.
जीवन के
हर कालखंड मे जीवित है मेरी माँ.

(विश्व मातृ दिवस पर मेरी माँ को समर्पित )

1 comment:

  1. 'जीवन के
    हर कालखंड मे जीवित है मेरी माँ.'
    प्रणम्य उद्गार!

    ReplyDelete