मेरे प्राणों में
हो रहा हैं जो
स्पंदन
वह तेरा ही तो
हैं ऊर्जा कण
देह देकर मुझे तो मुक्त कर दिया माँ तूने
पर माँ - माँ कहती हैं
नित मेरी हर धड़कन,
फिर भी किस कालखंड से
करूँ तेरा स्मरण
यह सोच कर हो रहा हैं
अजीब सा स्फुरण
रात को बिस्तर को गीला
करने पर जगाने से
घुटने के बल चलने पर
प्रसन्न होने से
पहली बार माँ कहने से
स्कूल से देर लोटने पर
बाट जोहने से
पिता की मार से बचाने
से
उसके हाथ की रोटी खाकर
जवान होने से
या फिर रोजी रोटी के
लिये घर से बिदा करने से
दुख की हर घड़ी मे सिर
पर हाथ फेरने से
सोचता हूँ किस कालखंड
से करूँ तेरा स्मरण
मुझे तो लगता हैं माँ
तू आज भी खड़ी हैं
मेरे घर की दहलीज़ पर
मेरा हाथ पकड़े
अपने आँचल से मुझे ढके
वही स्नेहिल छांव
वही करुणा आंखो में लिए
जो कह रही हैं मुझे भी
क्यूँ रुला रहा हैं तू
इतना सब याद दिला कर
बस अपनी राह पर चलता
चल निस्छल
देखना तेरे पीछे खड़ी हूँ
मैं ,
तेरी माँ.
जीवन के
हर कालखंड मे जीवित है मेरी माँ.
(विश्व मातृ दिवस पर मेरी माँ को समर्पित )
'जीवन के
ReplyDeleteहर कालखंड मे जीवित है मेरी माँ.'
प्रणम्य उद्गार!