भगवान से वरदान पाये
मनुष्य का कद
अकसर बढ़ने लगता है
अनियंत्रित होकर
विंध्याचल पर्वत की भाँति
और रोकने लगता है
आने से दूसरों के जीवन में प्रकाश
फैला देता है अंधकार का साम्राज्य
लेकिन तभी कोई आता है
लोगों के जीवन में उजाला लेकर
और युक्ति से प्राप्त कर लेता है पर्वत से
और न बढ़ने का आश्वासन
अगस्त्य ऋषि बनकर
जब -जब अहं बढ़ता है
विंध्य पर्वत सा
तब -तब कोई न कोई आ ही जाता है
बिलकुल ज़रूरी नहीं वह कोई एक ऋषि हो
अक्सर साधारण से लगने वाले
मनुष्यों का समूह भी तोड़ देता है
पहाड़ सा दर्प
किसी वरदान पाये मनुज का भी
चाहो तो इतिहास या वर्तमान को पढ़ लो
किसी ने ठीक ही कहा !!
*
रामकिशोर उपाध्याय
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