मौन
सदा स्वीकृति सा शोर नही करता
उत्सव का शोर
अक्सर अंतर में व्यथित होकर चुप हो जाता
बादल
सदा पानी सा गीला नही होता
और पानी
कभी रेत सा रीता हो जाता
फिर क्यों
बादल सा रेतीला
और रेत सा पनीला
होकर क्या कहना चाहता है
उत्सव के शोर में मेरा मौन
क्या तुम्हे कुछ मालूम है
नहीं तो ..............................
उगी नागफनी से पूछ लेते है
,,,,,,
*
रामकिशोर उपाध्याय
No comments:
Post a Comment