Monday 8 May 2023

था एक वादा

उनकी याद में
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साथ चलते -- चलते क्यूँ फासले हो गये
पास रहते -- रहते क्यूँ हादसे हो गये
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था एक वादा फलक तक साथ चलने का
एक आँधी चली के अलग काफले हो गए
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आँखों में बसती थी फूलों की एक बगिया
अब तो इस भवरे को इतराए ज़माने हो गए
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रुत बदली और बदला गया मिजाज़ मौसम का
अब तो तारों के गाँव में धूप से उजाले हो गए
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सुनाती थी उनकी साँसें एक सरगम
क्या कहें के सुर और साज बेगाने हो गए
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न गुनाह मेरा था न ही उसका था कोई
न जाने क्या हुआ के खफ़ा बुतखाने हो गए
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दिल रोता है आज भी महबूब की याद में
मत पूछो अब किस्सा, ये जख्म पुराने हो गए
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रामकिशोर उपाध्याय


12 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (११-०५-२०२३) को 'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक- ४६६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. था एक वादा फलक तक साथ चलने का
    एक आँधी चली के अलग काफले हो गए
    वाह!!!

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  3. बहुत सुंदर गज़ल।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. बहुत सुंदर उम्दा ग़ज़ल।

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  5. बहुत सुंदर

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