जो पाली चाहत हमने बसने की दिल में
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जो चाही हमने इजाज़त रहने की नैनो में ,
तो पहले से ही इनको काजल से भर लिया .
जो जाहिर की मंशा रहने की जुल्फों में,
तो पहले
से ही इनको फूलों से सजा लिया
जो मांगी मोहलत लटकने की कानों में ,
तो पहले से ही इनको झुमको से पटा लिया .
जो हमने की गुज़ारिश सजने की लबों में ,
तो पहले से ही इनको सुर्खी से रंग लिया .
जो पाली चाहत हमने बसने की दिल में ,
तो पहले से ही इसको चुनरी से ढंक लिया .
जो मांगी हमने मन्नत सिमटने की कटि में ,
तो पहले से ही इसको करधनी से छुपा लिया .
जो रखी ख्वाहिश हमने रचने की पाँव मे,
तो पहले से ही इनको महावर लगा दिया .
nice :) quite different and beautiful
ReplyDeleteअगर मैं इस कविता का शीर्षक ' हाउस फुल ' रखता तो कैसा रहता?
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