Monday, 11 May 2015

चाँद और लहरें

चाँद और लहरें
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जैसे -जैसे बढ़ रहा था
लहरों का शोर
उठ रहा था नाविक का
दर्द भी जोर जोर
साहिल का खामोश समर्थन
बना रहा है लहरों को उद्दंड
लडखडाती थी कश्ती
पर होंसले को थामे था वह प्रचंड
लड़ रहा है लड़ाई
समंदर के उस पार जाने की
बेशक उसकी नांव कई बार डगमगाई
नाविक ने सुना था
लहरें चाँद से मुहब्बत करती है
और उसके बाहुपाश में ही
अपनी गति को नियंत्रित करती है
बस नाविक देने लगा आवाज
चाँद को
और करने लगा प्रतीक्षा
कि कब बदले चाँद का मिज़ाज .....
गम के उठते घने
उस तूफ़ान में .....|
--
रामकिशोर उपाध्याय

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