Friday, 28 October 2011

' कामयाब '



साहिल शांत 
लहरे अनंत 
---टकराहट प्रतिपल बढती ही जाये 
फिर भी साहिल हटता ही नहीं
----बना होगा फौलाद का 
सोचा दूर के मुसाफिर ने 
परन्तु 
निकट आकर देखा तो थे 
---रेत के कुछ कण 
कितने बिखरे-बिखरे 
कितने अलग-अलग 
पर 
--- मकसद में पूरे कामयाब 


.  कविता का जन्म मद्रास ( अब चेन्नई) के मरीना बीच पर वर्ष १९८६ में हुआ. कादम्बिनी में भी प्रकाशित हुई                     

2 comments:

  1. इस कविता में एकता का बल दिखाया गया है | जीवन के थपेड़ों से लड़ते हुए हमे इसी तरह एकता एवं धैर्य का परिचय देना चाहिये | बहुत सुंदर कबिता लिखने के लिए धन्यवाद |

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