शब्द अब और नहीं चीखेंगे
सन्नाटे और गहरा जायेगे
शंकुत अब और नहीं उड़ेंगे
कँवल
अब और खिलेंगे
ओंस की बूंदे और नम नहीं होंगी
मन
अब पतंग बनकर नहीं बहेगा
अवनि अब बिछौना लगा रही हैं
धुंध की
चादर अब फ़ैल रही हैं
चांदनी पर्वत के पार चली गयी हैं
यह आसमान में ब्लैक आउट कैसा ?
आज तो अमावस भी नहीं हैं
सब समझ गए हैं
तुम ..........
आ गए हो।
Ramkishore Upadhyay
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