Sunday, 20 October 2013

वही फ़कीरी की जमीदारी *****
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हर रोज
हमें काटा गया
किसी ने हमारा कद छोटा करने को
किसी ने घड़ने के लिए
कभी तलवार से कटे
कभी व्यंग वार से कटे
कोई कलम चली
हमें हद में रखने को
कोई पेन चला
हमारा कद बढ़ाने को
लाख कोशिशों के बावजूद
न घटा हमारा वजूद

मित्रो,ये सब तुम्हारा ही कमाल हैं
जो आया नहीं कोई जवाल
एक सफ़र
बड़े ही शान से गुज़र रहा हैं ..
बस तुम्हारे साथ के अहसास हैं
वही बेफिक्री
वही फ़कीरी की जमीदारी
हैं आज भी ................

रामकिशोर उपाध्याय 

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (21.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  2. मैंने आपका ब्लॉग भी ज्वाइन किया है , आपका मेरे www.kavineeraj.blogspot.com ब्लॉग पर हमेशा स्वागत है .

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  3. नीरज कुमार , आपके स्नेहिल शब्दों के हार्दिक आभार. मैं भी आपका ब्लॉग ज्वाइन कर रहा हैं. संवाद बना रहे, यही कामना हैं.

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  4. सुन्दर एहसासात की पोस्ट सशक्त भावाभिव्यक्ति और रूपक तत्व।

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  5. जब फकीरी ओढ़ ली तो कौन कुछ कर सकता है ... भावपूर्ण रचना ...

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    1. जी जीवन से यही कोई नहीं छीन सकता हैं ... शेष तो ..........आभार स्नेह के लिए ..............

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