Tuesday 1 October 2013

पंचभूत 
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पंचभूत --
घट-घट में रमी 
ईश्वरीय ऊर्जा की 
इतनी जीवंत जटिल व्यष्टि 

और 
उदात्त भावसम 
सागर की उतनी ही
सहज स्वीकार्य अभिव्यक्ति

या फिर
मरघट में जा थमी
अतृप्त अमूर्त कामनाओं की
एक मूक निर्जीव समष्टि

तो
कहाँ ढूंढ़ रहे हो
जीवन का अमृत -कलश
कष्टसम विष के अनन्त समुद्र में
जहां न सीप हैं
न उसमे पड़ा कोई मोती

रामकिशोर उपाध्याय

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