Tuesday 8 October 2013

दौहरे मापदंड ----------------

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एक दिन की बात हैं मैं 2 AC कोच में शिवगंगा एक्सप्रेस से  दिल्ली से वाराणसी जा रहा था। गाड़ी चलने के थोड़ी देर बाद मेरे बराबर वाले कूपे ( या कहे हिस्से) से गरमा -गरम बहस शुरू हो गयी , भ्रष्टाचार पर। उस चार बर्थों में बैठे लोग अलग- अलग कोणों से भ्रष्टाचार के कारणों का विच्छेदन कर रहे थे। सबके अपने अपने तर्क थे। कोई कांग्रेस को दोषी बता रहा था , कोई बसपा को, तो कोई सपा को , तो कोई भाजपा को। लोग भविष्य के प्रति बहुत शंकित भी थे और कई आशान्वित। कोई किसी राजनेता को  लेन को बात कर रहा था, तो कोई किसी और को। यहाँ मैं  मर्यादा के विपरीत मान कर किसी का नाम लेना नहीं चाहता हूँ। उन सम्मानित यात्रियों में एक महिला भी थी जो किसी एक राजनेता को लेकर बड़ी उत्साहित थी और उनकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ रही थी। मेरा मन भी बहुत हो रहा था कि शब्दों के जुगाली में मैं भी भाग लूँ और उधर जाने की सोच ही रहा था कि उस संभ्रात महिला का एक फोन आया और  चर्चा  बीच में टूट गयी। क्या बात हो रही थी उनके बीच यह तो पता नहीं चला परन्तु यह लगा कि दूसरी और भी एक महिला थी जो कह रही की पिछली बार उसे ट्रेन में रिजर्वेशन का टिकट नहीं मिला। महिला ने तुरंत फोन पर कहा जो मैंने भी सुना, अरे तुमने बेवकूफी की। गाड़ी में चढ़ जाती और टीटीइ को दो सौ रुपये देती , वह तुम्हे सीट /बर्थ दे देता। साथ बैठे किसी यात्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। परन्तु मुझे सुनकर लगा कि आज का व्यक्ति कितना पाखंडी हैं, बोलता कुछ और हैं और व्यवहार कुछ और करता हैं। यद्यपि मुझे उस महिला से नाराज होने का कारण नहीं नजर आता हैं। परन्तु किस्सा हमें सोचने पर विवश तो करता ही हैं एक भारतीय के रूप में ......

रामकिशोर उपाध्याय 

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