अपने पिता के कंधे पर
----------------------
बालक
जब कंधे पे
अपने पिता के बैठता
उसे लगता कि वह उड़ चला हैं
पास में चलते लोग
उसे बौने लगते
जैसे किसी गमले में उगे बरगद
नभ ऐसा लगता
मानो बारिश से बचने का
नीला छाता
उसमे सूरज की किरणों की तीलियाँ
चाँद को चाहता
कि गुब्बारे वाले धागे से बान्ध ले
और उसे खूब उडाये
हवा के पंखों पे सवार
वह अपने दोस्तों को रिझाये
बालक
जब कंधे पे
अपने पिता के बैठता
ये धरती उसे पांव रखने
के योग्य नहीं लगती
फूल उसे सितारे लगते
जिन्हें तोड़कर अपनी माँ को देदे
जो उसके जीवन में सुगंध भर दे
पेड़ों के झुरमुट
उसे खिलौने की डंडिया लगती
जिसे प्रिय मित्र को दे दे
बांस
उसे बांसुरी सी दिखती
जो कल ही मेले से खरीदी
दूर तलक चलने पर
पिता थककर नीचे उतर देता
बच्चे की आँखों से सपने गायब
और ऊँगली पकड़
पिता की चल देता
जैसे अतीत को थामता वर्तमान
या फिर भाग जाता
सखा के साथ
उसके गले में
हाथ डालकर ….
जैसे रेल की पटरियां
भविष्य के गंतव्य को
आशा के इंजन को दौड़ती
अपने उपर…
अपने विश्वास जैसे-------------
रामकिशोर उपाध्याय
20.10.2013
----------------------
बालक
जब कंधे पे
अपने पिता के बैठता
उसे लगता कि वह उड़ चला हैं
पास में चलते लोग
उसे बौने लगते
जैसे किसी गमले में उगे बरगद
नभ ऐसा लगता
मानो बारिश से बचने का
नीला छाता
उसमे सूरज की किरणों की तीलियाँ
चाँद को चाहता
कि गुब्बारे वाले धागे से बान्ध ले
और उसे खूब उडाये
हवा के पंखों पे सवार
वह अपने दोस्तों को रिझाये
बालक
जब कंधे पे
अपने पिता के बैठता
ये धरती उसे पांव रखने
के योग्य नहीं लगती
फूल उसे सितारे लगते
जिन्हें तोड़कर अपनी माँ को देदे
जो उसके जीवन में सुगंध भर दे
पेड़ों के झुरमुट
उसे खिलौने की डंडिया लगती
जिसे प्रिय मित्र को दे दे
बांस
उसे बांसुरी सी दिखती
जो कल ही मेले से खरीदी
दूर तलक चलने पर
पिता थककर नीचे उतर देता
बच्चे की आँखों से सपने गायब
और ऊँगली पकड़
पिता की चल देता
जैसे अतीत को थामता वर्तमान
या फिर भाग जाता
सखा के साथ
उसके गले में
हाथ डालकर ….
जैसे रेल की पटरियां
भविष्य के गंतव्य को
आशा के इंजन को दौड़ती
अपने उपर…
अपने विश्वास जैसे-------------
रामकिशोर उपाध्याय
20.10.2013
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-10-2013)
शेष : चर्चा मंचःअंक-1404 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, इस सम्मान के लिए आपका अत्यंत आभारी हु ....
ReplyDeleteनमन ,
बहुत उम्दा ... गहरी सोच से उपजी रचना ..
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा जी , आपके स्नेहिल शब्दोके लिए ह्रदयतल से आभार
ReplyDelete