बेखुदी में अक्सर ऐसा ही होता हैं !
हर रोज
एक ख़त लिखा
लिखा और पोस्ट कर दिया
महीने के बाद
एक डाकिया आया
साहेब इनाम इकराम दीजिये
और बोला
साहेब ये कुछ आपके ख़त आये है
लगता हैं आपको किसे से इश्क हो गया
हर रोज एक ख़त भेज रहा हैं
दिल बल्लिओं उछलने लगा
शायद पड़ोस में रहने वाली हो
या वो ऊपर वाली
दस रुपये दिए
बैठक में इत्मिनान से खोलने लगे
तभी जोर से चीखे
डाकिया लूट ले गया
इनपर तो खुद मेरा ही पता लिखा हैं
बेखुदी में दोस्तों
अक्सर ऐसा ही होता हैं
राम किशोर उपाध्याय
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