Sunday 14 July 2013

जीने की शर्त
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वो रोज
एक स्वप्न दिखा रहा था
एक नयी बात सिखा रहा था
खिलोने से खेलने का
खिलोने चलाने का
किताब एक नयी लिख रहा था
कैसे जिन्दा रहा जाये
कैसे जिंदा रखा जाये
भूख मिटाने की
भूख बढाने की

यह सब बताने को
रोज एक नया सबक सीख रहा था
पुरानी किताब को झाड कर साफ़ कर रहा था
गुरु के बताये मार्ग पर उस समय  नहीं
परन्तु अब चल रहा था
वह आल इन वन बन रहा था

लोग मेले लगाते
एक सर्कस में उसे नचाते
कई नयी तमाशा कम्पनी आ रही है

 लोग उसके ज्ञान पर ताली बजा रहे थे
वह भी मुग्ध हो जोश में बढ़ता ही जा रहा था
निर्बाध .........
उसका उत्साह
अमावस के बाद के पखवाड़े के चाँद
की तरह बढ़ रहा था
कई लोगो की रोज़ी चल निकली
कई उम्मीद में पैसा लगाते


लोग उसका प्रयोग कर रहे थे
परन्तु वह सोच रहा था वह सबको प्रयोग कर रहा है
कई तो मुफ्त में ही भोपूं बन बैठे थे
लोग समय आने पर उसको जिबह कर देंगे
राज सिंहासन पर राजपुत्र ही बैठेगा
यही तो सत्ता का अनुशासन है
यही फिर से पालन होगा
देकर राजगद्दी
भारत भूमि को तब अतीत का गौरव  याद आयेगा
वह रह जायेगा सिर्फ भक्त
माँ का एक अनन्य भक्त
 
शायद यही है  देश का मर्ज़ 
इस देश में    जीने की शर्त

राम किशोर उपाध्याय 

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