Friday, 12 July 2013

हमें याद हैं

इशारा मिला
तो जाने क्या ख्वाब सजने लगे
जुबान खुली
तो जाने क्या सवाल उठने लगे

हम खड़े हैं
उनके गुनाहगार बनकर अपनी अदालत में
वो  खड़े हैं
अपने पहरेदार बनकर  हमारी अदावत  में

हमें याद हैं
अपना  दायरा और अपना आशियाना
नहीं याद हैं
तुम ,तुम्हारा नाम,पता और ठिकाना

गर इश्क है
एक गुनाह , तो जरुर हमने किया
शोलों को हवा देना हैं
एक  गुनाह, तो जरुर तुमने  किया

चलो भूल जाते हैं
ये गुनाह तुमने किया या हमने किया
हमने तो कहा कुछ नही
जो कहा तुमने लो   वो भी भुला दिया

(c)रामकिशोर उपाध्याय  

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