आपकी सुवास
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आती -जाती सांस में विश्वास हैं
प्रकट विश्वास में प्रभु का वास हैं
क्यों फिरूं नित नव वन उपवन
जब दिगदिगंत आपकी सुवास हैं
चक्षुओं में लहराता करुणा सागर
अंक छिपा जाता कष्ट का गागर
नव चेतना करती मेरा आव्हान
जब ह्रदय में प्रेम का उच्छ्वास हैं
हर स्पंदन है साक्ष्य जीवन का
हर किरण हैं साक्ष्य अंधकार का
आ रही हैं तरंग सूक्ष्म आधार से
आनंद दीप जले उर में मिठास हैं
(c) रामकिशोर उपाध्याय
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आती -जाती सांस में विश्वास हैं
प्रकट विश्वास में प्रभु का वास हैं
क्यों फिरूं नित नव वन उपवन
जब दिगदिगंत आपकी सुवास हैं
चक्षुओं में लहराता करुणा सागर
अंक छिपा जाता कष्ट का गागर
नव चेतना करती मेरा आव्हान
जब ह्रदय में प्रेम का उच्छ्वास हैं
हर स्पंदन है साक्ष्य जीवन का
हर किरण हैं साक्ष्य अंधकार का
आ रही हैं तरंग सूक्ष्म आधार से
आनंद दीप जले उर में मिठास हैं
(c) रामकिशोर उपाध्याय
विश्वास में सुवास है।
ReplyDeletePANDEY JI APAKA BAHUT BAHUT ABHAR ....AISE HI PRERIT KARTE RAHE.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनये लेख : ब्लॉग से कमाई का एक बढ़िया साधन : AdsOpedia
ग्राहम बेल की आवाज़ और कुदरत के कानून से इंसाफ।
HARSHVARDHAN JI APAKA BAHUT BAHUT ABHAR ....AISE HI PRERIT KARTE RAHE.
Deleteतुषार राज रस्तोगी JI APAKA BAHUT BAHUT ABHAR ....AISE HI PRERIT KARTE RAHE.
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