पीड़ा अंतर्मन की
क्या है
क्यों है
क्या है
स्वाभिमान
आत्मसम्मान
क्यों होता हैं
दर्द शब्दों से
तीर तो कुछ पेशियाँ
तितर- बितर करते हैं
और चुप हो जाते हैं
शब्द क्यों कोंधते रहते हैं
सुसुप्त मन में भी
अक्स धुंधले जरुर होते है
मिटते क्यों नहीं
मेरे भीतर
दंभ क्यों हैं
दर्प क्यों हैं
वासना क्यों हैं
उपासना क्यों नहीं हैं
क्रोध की अग्नि क्यूँ जलती मुझे
मेरे मरने से पहले
वो भी बिना लकड़ी ,,,,,
बिना घी
क्यूँ करते हैं
विरोध के शब्द
मेरी कपाल क्रिया ,,,,,,
पुत्र के बिना ही
क्यों नहीं आ रहे प्रश्न
जो नचिकेता ने किये
यमराज से
परन्तु यहाँ का यमराज .......
तीन वर मांगने को नहीं कहता
लम्बी सी जेब उन कागज़ के टुकड़े से भरने को कहता
जिस पर चित्र छपा सबके लिए
लाठी लिए एक पिता ने
जिसने पुरे परिवार के लिए धोती छोड़ी लंगोटी पहनी
कोट त्यागा, लपेटा सूती धागा
और गोली खाके सीने पर राम राम बोलता
मैं नचिकेता का हश्र जानकर
सन्नाटे में चीत्कार करता
और मुंह पर ताला लगाकर
एक असफल प्रयास करता कुछ एक साँसे बचाने का ...
और अपने ऊपर लिखे प्रश्न
अपनी कभी न उतरने वाली केचुल में रखकर
बड़ा तीसमारखां बन जाता।
राम किशोर उपाध्याय
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