प्रेम के प्रतीक तुम
प्रेम के प्रतीक तुम
दिल के करीब तुम
व्यथा मत कहो.
अव्यक्त मनभाव को
अकथनीय संवाद को
देह धरकर सुनो
सांध्य का दीप तुम
उषा का प्रदीप तुम
दिव्य बन चलो
अनन्य कृति तुम
अदृश्य शक्ति तुम
गाथा बन रहो .
संताप पर करुणा तुम
मन की प्रेरणा तुम
सरिता बन बहो.
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