Friday, 21 June 2013

उत्तराखंड की इस विपत्ति में सभी के दुःख में मैं भी अत्यंत दुखी हूँ और सभी की मंगल कामना करता हूँ . यह कविता केदार के नाथ की हमको चेतावनी स्वरुप हैं

शिव(प्रकृति ) की चेतावनी
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मैं तो अपने नंदी पे सवार
ले गणेश पारवती को संग
जग कोलाहल से दूर यहाँ
आ बसा पहाड़ सपरिवार

तूने कभी मुझके भोला बताया
और किये पांव मुझपे सवार
कभी तू पूजने लगा सरे राह
फिर भी नहीं किया प्रतिकार

मैंने टोका तुझे बार-बार
करता रहा तू बस इंकार
मुझे रहने दे अकेला यहाँ
तू करता रहा मेरा व्यापार

हिमगिरी पे भी किया तंग
किया हैं मेरी शांति को भंग
खुद ही काटे पहाड़ पेड़ सब
मेरा नहीं,ये तेरा ही हैं प्रहार

तू यह जान ले ऐ मानव !
खा जायेगा लालच का दानव
बस रख मुझे अपने ह्रदय में
वरना यूँ ही मिटेगा बार-बार

राम किशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. आपकी यह पोस्ट आज के (२२ जून, २०१३, शनिवार ) ब्लॉग बुलेटिन - मस्तिष्क के लिए हानि पहुचाने वाली आदतें पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  2. तुषार राज रस्तोगी जी, आपका बहुत बहुत आभार

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