Tuesday, 18 June 2013


संकेत 
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और
भी कई है ऊंचाईयां
आकाश के आगे -
ना देखो घबराकर
तुम्हे एहसास नहीं है -
तुम तो एक तृण हो
उड़ते गुबार का -
हवा के झोंको को तुम अपनी उडान ना मानों
वह तुम्हारी गति नहीं हैं
तुम्हे ना धरा मिलेंगी
ना ही आकाश
हां ................
अगर तुम समुद्र के किनारे
उड़कर बैठ गए तो हो सकता है
कोई तुम्हारा सहारा लेकर
डूबने से बच जाये
वैसे तिनकों का सहारा डूबने वाले लेते नहीं है
डूबने वाले
अक्सर तैरने के  भ्रम में डूब जाते हैं
अच्छा होता
तुम उत्सर्जित पत्र बन उड़ जाते
एक नए बसंत के स्निग्ध पत्र को जन्म देकर
या फिर किसी ताल के जल पर बैठ जाते
जिस पर कोई नन्हा जीव
नांव बनाकर उतरजाता
पार .....................
चला जाता उस पार
जहाँ उसका प्रियतम
कर रहा है इंतज़ार .......

राम किशोर उपाध्याय 

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