Thursday 8 May 2014

छोटी -छोटी कवितायेँ
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गवाक्ष से ...
आंखे हो गयी पनीली 
देख राह खड़ी सामने
लम्बी और पथरीली
यवनिका से ....
आँखों के कोने हो गए मटमैले
देख पात्रों के अभिनय में
स्वयं का यथार्थ का चित्रण करते कुछ अलबेले
किनारे से .....
विश्वास के छूट गए अवलम्ब
देख डगमगाती नाव लहरों पर
टूटता नाविक का दंभ
रामकिशोर उपाध्याय

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