Tuesday 20 May 2014

एक पथ अलग सा

एक पथ अलग सा
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एक दिन
चुपचाप
भीडभाड वाला पथ छोड़कर
एक सूनी और अनजानी राह पर चल पड़ा
जहाँ न वायु का  प्रमाण था
और न जड़ चेतन का कोई विस्तार था
शून्यता ...बस और कूप जैसी शून्यता
अचानक
एक पत्थर से टकरा गया
अंतर्मन जोर से चीखा
चोट तो नहीं आई ?
नहीं ....
बस पत्थर टूट गया
और एक मूर्ति नज़र आई
कुछ- कुछ मुझसे मिलती जुलती  ....|

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रामकिशोर उपाध्याय 

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