Thursday 8 May 2014

ताल का हाल
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यूँ तो ताल था भरा भरा
पर जलकुम्भियाँ थी खूब छाई
शांत नीला जल नहीं ले पाता था यौवन की अंगड़ाई 
बैठ नहीं पाते थे हंस,
देख नहीं पाता उनकी गंभीर चाल
बस यूँ ही रहता था उदास वो ताल .......
एक दिन एक बदली छाई
और बरखा गीत गा गई
अचानक ताल में बाढ़ आ गयी
समस्त जलकुम्भियों को संग बहा ले गयी
मौसम जब गया संभल
देखता कि खिला है एक कमल
दृगों को दृष्टिगत हुआ ताल पे धीमे धीमे उतरता एक मराल
बस यूँ ही दिन फिरे और खुश हुआ ताल.......
उजाला आने से पहले
कहर ही ढाए है सदा जगत में अँधेरे ने.....
बाढ़ आना था जरुरी
ये सोचा ताल पे बैठे एक शब्द चितेरे ने......

रामकिशोर उपाध्याय

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