Tuesday 13 May 2014

चाँद का मिज़ाज -------------------


लहरों के शोर में
दबा जा रहा है नाखुदा के दर्द का शोर
साहिल का खामोश समर्थन
लहरों को बेख़ौफ़ बना रहा है
लडखडाती कश्ती को
वह होंसले को पतवार से खे रहा है
लड़ रहा है लड़ाई
समंदर के उस पार जाने की
उसने सुना था के लहरें
चाँद से मुहब्बत करती है
और वो इंतज़ार करने लगा
चाँद के मिज़ाज को बदलने का .....
उस गम के घने तूफ़ान में .....|
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रामकिशोर उपाध्याय

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