Thursday 8 May 2014

न पुकारना मुझे

न पुकारना मुझे !!!---------------
क्यों ठहर कर उठते है कदम
क्यों लौटकर आता हूँ प्रतिदिन द्वार से उसके
और क्यों हर निशा के अंधकार में मुड जाता हूँ स्वयं की ओर 
फिर क्यों सुनाई देता है अनहद का शोर ....
हे पथिक !
लगता है अभी भी कुछ है शेष
जो शेष है वही तो है विशेष
तो फिर चल निकल
बस अविकल
न मुड़ फिर उस राह से
जिसे चुना था चाह से
काहे भटके जग में चहुँ ओर
तोड़ दे जग से प्रीत की डोर .....
और सुन ले सिर्फ अपने भीतर का शोर
ले जा स्वयं को अनंत को ओर....
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रामकिशोर उपाध्याय

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