Tuesday, 27 August 2013

वापस तो नहीं लौट जाओगे ?
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कल रात
मैं अँधेरे में
चल रहा था
एक आहट हुयी
पलट कर देखा तो
कोई नहीं था
फिर साथ -साथ चलने
का आभास हुआ
फिर मुड के देखा
तो कोई बुदबुदाया
मैं घबराया
वह जोर से चिल्लाया
अरे पहचानते नहीं
मैं हूँ तुम्हारा साया,,,,,
मेरा साया ,,,
मैं बरसों से साथ तो हूँ
मैंने तो  नहीं देखा
कभी मिले भी नहीं
मिलते कैसे ?
तुम तो दुनिया को देखते रहे
सपनों में जीते रहे
कामयाब होने के जुगाड़ में लगे रहते हो
फेल होने से डरते हो
दौड़ते रहे हो अबतक --
फिर मैं कैसे मिलता तुम्हे
आज भी
तुम्हे इसलिए मिलगया
कि तुम महज अपने बारे में सोच रहे थे
चकाचौध से निकल के
अँधेरे में चहल कदमी कर रहे थे
मैं तभी मिलता हूँ
जब बाहर अंधेरा हो
मैं अन्दर का दीपक हूँ
ब्रह्म जोत से जलता हूँ
अब तुम
वापस तो नहीं लौट जाओगे ?
नहीं तो मैं ये चला,,,,,,,,,,,,,  

1 comment:

  1. मैं अन्दर का दीपक हूँ
    ब्रह्म जोत से जलता हूँ
    ***
    वाह!

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