Friday 2 August 2013

आज कल देखा

आज सूरज को लम्बे डग भरते देखा
जब शाम को चाँद ने उसे घूरके  देखा

जब सितारों  ने सुबह को उगते देखा 
तब चंद्रमा को कोटर में छिपते  देखा

सृष्टि को जंतु  जगत को रचते देखा
वन में पुष्पों को पल्लवित होते देखा

पत्तों पे ओंस  को मोती बनते देखा
संध्या काल में फूलों को गिरते देखा 

आशा को घोर निराशा  मिटाते देखा
उत्कोच को  अपेक्षा में बदलते  देखा  

जीवों को इस कालचक्र में जीते देखा
इसी क्रम में कालकलवित होते देखा 

रामकिशोर उपाध्याय 

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